Ticker

6/recent/ticker-posts

रणदीप सिंह के जुनून ने रेतीली जमीन में भी पैदा किया केसर


गोरीवाला न्यूज़ नेटवर्क (9813155820)
हरियाणा के अन्तिम छोर में बसे जिला सिरसा के गांव मलिकपुरा के किसान रणदीप सिंह ने प्रयोग के रूप में केसर की खेती की शुरूआत का मन बनाया ओर खेत में कुछ अलग से पैदावार लेने की ठानी। किसान रणदीप सिंह ने ऐसी जगह पर केसर की पैदावार ली है,जहां से नरमा व गेहूं की पैदावार भी अच्छे से नही ली जा रही है। एकदिन परिवार के सभी सदस्य घर में बैठे जट्टू इंजीनियर मूवी देख रहे थे। जिसमें पूज्य गुरू सन्त डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बताया कि हरियाणा में भी केसर की उन्नत पैदावार ली जा सकती है। केसर की पैदावार कर किसान अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकता है। वहीं पास में मूवी देख रही रणदीप सिंह की माता सुखमन्दर कौर ने कहा कि बेटा जब पिता जी केसर की खेती के लिए कह रहे है तो इसकी जानकारी प्राप्त कर उसी दिन से रणदीप सिंह ने माता के कहे अनुसार यू-टयूब पर केसर की खेती की जानकारी लेनी प्रारम्भ कर दी। इसी बीच रणदीप सिंह ने एक कैनाल में केसर का बीज ऑनलाइन मंगवाया। यू-टयूब के माध्यम से केसर के बीज की रोपाई,निराई,गुडाई,खाद आदि की जानकारी हासिल कर रणदीप सिंह ने एक कैनाल जमीन को तैयार कर 10 अक्तुबर से पहले केसर के बीजों की रोपाई की जानी थी। रणदीप सिंह ने बताया कि इसके एक कैनाल में 2 किलो 600 ग्राम कि पैदावार हुई है। जबकि 1 किलोग्राम केसर का बाजार का भाव 40000 रूपए से लेकर 100000 रूपए तक का है। एक एकड़ में1किलोग्राम बीज डाला जाता है। इसमें किसी भी प्रकार की कोई पैस्टीसाईड दवाओं का प्रयोग नही किया जाता है। केवल ऑर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है।  





विधि
..................
 रणदीप सिंह ने सबसे पहले एक कैनाल जमीन को समतल कर उसमें गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिलाया। जमीन को तैयार करने के बाद रणदीप सिंह ने एक कैनाल में पूर्व से पश्चिम दिशा कि तरफ दो फूट चौडंी बट्टे बनाई व बट्ट के उतर दिशा की तरफ बीज की रोपाई हाथों से की गई। रोपाई के उपरान्त बट्टों में सिंचाई की गई। बट्ट पर रोपित किए गए एक बीज से दूसरे बीज की दूरी का अंतराल 9 ईंच रखा गया। छह दिन के बाद केसर के बीज अंकुरित होने प्रारम्भ हो गए। बीज अंकुरण के समय खरपतवार भी उगना शुरू  हो जाता है। 
ऑर्गेनिक खाद की विधि 
.............................  
बीज रोपित के समय ही 5 किलोग्राम घरेलू लस्सी,100 ग्राम लोहा,100 ग्राम कांस्य को प्लास्टिक के बर्तन में मिलाकर ढ़ककर रख दिया जाता है। जैसे ही केसर के पौधों पर करीब 20 जनवरी के बाद पौधे पर का अंदेशा होने पर 1 कैनाल में लस्सी की स्प्रे एक लीटर लस्सी स्प्रे को ढ़ोलक में डालकर केसर के पौधों पर किया जाता है। वहीं इसी दौरान पौधों पर  फगस रोग व तैलीय की बिमारी लगनी शुरू हो जाती है इससे निपटने के लिए  आक 2 किलोग्राम,धतूरा 2 किलोग्राम ,1 किलोग्राम नीम की पतियों 10 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लिया जाता है। तब तक पानी को उबालना है जब पानी 5 लीटर पानी शेष रह जाए। इसके बाद केसर के पौधों पर इसकी स्प्रे की जाती है। 
फूलों का लगना
....................
 22 मार्च के करीब केसर के पौधों पर फूल अंकुरित होने शुरू हो जाते हंै तो इसका  रंग पीला होता है। चार दिन के अंतराल के बाद फू ल का रंग केसरिया हो जाता है। इसके बाद फूलों की पंखुडिय़ों को तोड़कर चार पांच दिन छाया में सुखाया जाता है। 
इसके बाद इसे बेचा जाता है।